Sunday, 19 August 2018

वापसी



वापसी

घर आँगन आकर रोजाना 
चीं-चीं-चीं-चीं करती रहतीं
दाना चुगते-चुगते दिन भर 
फुदुक फुदुक फुदकती रहतीं.

विचार एक दिमाग में आया
घर नवीकरण मन बनाया
टूटती दीवारें बनती जाती
खट खट खट खट होती रहती....
कलरव अब हो गया गायब !
मन उदास गौरैय्या गायब !
पंछी एक न दिखे अब आँगन
आँगन सूना ! सूना सा मन ! .....
दिवस महीने बीते यूँ ही
आँगन महीनों रीता यूँ ही
दाना पड़ा पड़ा गल जाता !
लेकिन पंछी एक न आता !
जल्दी से तब अकल दौडाई !
आंगन चहके गौरैय्या माई !!
बना दिए खुद पाँच घरोंदे
लो फिर आई गौरैय्या माई ....
अकेले एक गौरैय्या आई
फिर संग एक चिड़े को लाई
आ गए फिर से सारे पंछी
चहका आँगन ! रंगत छाई !!
..... अनहद

रमता जोगी बहता पानी .....




रमता जोगी बहता पानी 
दोनों की एक ही कहानी
रैन दिवस न रोके इनको 
रमती रवानी इनकी जिंदगानी ...
..... अनहद 


जब कोई अपना पास होता है




जब कोई अपना पास होता है

हर एक लम्हा यादगार हो जाता है

दुनिया कब थमी है 

किसी के लिए

लम्हा जो जी लिया तस्वीर हो जाता है 

..... अनहद




वापसी



वापसी


घर आँगन आकर रोजाना
चीं-चीं-चीं-चीं करती रहतीं
दाना चुगते-चुगते दिन भर 
फुदुक फुदुक फुदकती रहतीं.

विचार एक दिमाग में आया
घर नवीकरण मन बनाया
टूटती दीवारें बनती जाती
खट खट खट खट होती रहती....
कलरव अब हो गया गायब !
मन उदास गौरैय्या गायब !
पंछी एक न दिखे अब आँगन
आँगन सूना ! सूना सा मन ! .....
दिवस महीने बीते यूँ ही
आँगन महीनों रीता यूँ ही
दाना पड़ा पड़ा गल जाता !
लेकिन पंछी एक न आता !
जल्दी से तब अकल दौडाई !
आंगन चहके गौरैय्या माई !!
बना दिए खुद पाँच घरोंदे
लो फिर आई गौरैय्या माई ....
अकेले एक गौरैय्या आई
फिर संग एक चिड़े को लाई
आ गए फिर से सारे पंछी
चहका आँगन ! रंगत छाई !!
.....
अनहद


Saturday, 18 August 2018

बचपन की बारिश



बचपन की बारिश

बारिश के बहते पानी में
छप्प - छप्प पैर चलाना
दोस्तों पर पानी उछालना
खुद भीगना .. 
दोस्तों को भी भिगाना
आज सुबह सुबह..
बारिश का आना अौर
बचपन का फिर से गुदगुदा जाना !!
न जाने कहां गुम गई 
वो बचपन की बारिश और उसमें नहाना !
कागज नहीं तो क्या !
चप्पल को पानी में बहाकर...
नाव के मजे लेना
न खुद की परवाह
न बस्ते में भीगती...
कॉपी किताबों की परवाह
भीगना-भिगाना मस्ती लुटाना
न जाने कहां गुम गई
वो बचपन की बारिश और उसमें नहाना !
जानकर छाता घर भूल जाना
रैनी डे की उम्मीद में
दोस्तों के साथ....
लकधक भीगते हुए स्कूल पहुंचना
छुट्टी की घंटी बजते ही..
खुद को नायक सा जतलाना
न जाने कहां गुम गई
वो बचपन की बारिश और उसमें नहाना !
झमाझम बारिश में भी
यूँ ही निकल जाना
अब मामूली फुहारों से भी
खुद को बचाना !
बारिश का मिजाज नहीं बदला..
वो आज भी नर्म स्पर्श के स्पंदन से
मुझे अपने पास बुलाती है
छाता हो या बरसाती
रोक देते हैं मुझे !
शायद बदले हालात में
अब मैं ही हो गया हूँ सयाना !
न जाने कहां गुम गई
वो बचपन की बारिश और उसमें नहाना !
....अनहद

छुट्टी के दिन



छुट्टी के दिन


हुई गर्मियां पड़ी छुट्टियाँ
कूलर पंखे संग बीता दिन !

लम्बी तान उठे देर से 

बीता छुट्टी का पहला दिन !!

सूर्य देव हुए बहुत मेहरबां

मई शुरू में जून के दिन !

पसीने में तर मानस सारा

घर पर बीता पहला दिन !!

गलियां सूनी चौबारे सूने
पक्षी प्यासे पानी बिन !

दोस्त सभी घरों में बैठे
बीता सुस्ती में पहला दिन !!

सूरज ! थोडा रहम करो अब
गर्मी कर दो थोडा कम !

छुट्टियों का मजा लेने दो
मस्ती में गुजरें छुट्टी के दिन !!

... अनहद



Saturday, 16 July 2016

पावस



पावस

घुमड़ - घुमड़ घन नभ में छाए
कड़-कड़-कड़ बिजली संग लाए
  दिन में हो गया घुप्प अँधेरा !
देख - देख जी सबका घबराए.
अब बरसे तब बरसे बादल
लहर-लहर नभ हिचकोले खाए
देखो उधर से आई बारिश
दौड़-दौड़ सब छत नीचे आए.
झम-झम झम बारिश आई
फुदक - फुदक दादुर टर्राएं
   पावस आयो ! पावस आयो !!
झूम-झूम सब मिलकर गाएं.
इंद्र धनुष की छटा निराली
वन मयूर नाचे इतराएं
बरसे मेघा सावन आया
  बच्चे कागज नाव चलाएं..

विजय जयाड़ा 16.07.16

           आज सुबह घने बादलों के कारण अँधेरे और बारिश का दौर चल रहा था. कक्षा में बच्चे बहुत कम आये. सामान्य पठन-पाठन के बाद सोचा ! क्यों न बच्चों के साथ खेल-खेल में मौसम के अनुकूल कुछ सृजन किया जाय.. अध्यापक की चित्त संतुष्टि व प्रसन्नता शिक्षार्थियों में निहित प्रतिभा विकास में ही होती है.
           भाषा विकास के क्रम में बच्चों के शब्द कोष मे चंद नए शब्दो, पावस, जी, घन, मेघ, हिचकोले, नभ, दादुर, मयूर, छटा का इजाफा करने की चाहत में एक प्रयास .. " पावस "