Sunday 19 August 2018

वापसी



वापसी

घर आँगन आकर रोजाना 
चीं-चीं-चीं-चीं करती रहतीं
दाना चुगते-चुगते दिन भर 
फुदुक फुदुक फुदकती रहतीं.

विचार एक दिमाग में आया
घर नवीकरण मन बनाया
टूटती दीवारें बनती जाती
खट खट खट खट होती रहती....
कलरव अब हो गया गायब !
मन उदास गौरैय्या गायब !
पंछी एक न दिखे अब आँगन
आँगन सूना ! सूना सा मन ! .....
दिवस महीने बीते यूँ ही
आँगन महीनों रीता यूँ ही
दाना पड़ा पड़ा गल जाता !
लेकिन पंछी एक न आता !
जल्दी से तब अकल दौडाई !
आंगन चहके गौरैय्या माई !!
बना दिए खुद पाँच घरोंदे
लो फिर आई गौरैय्या माई ....
अकेले एक गौरैय्या आई
फिर संग एक चिड़े को लाई
आ गए फिर से सारे पंछी
चहका आँगन ! रंगत छाई !!
..... अनहद

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