Monday 5 October 2015

सावनी बचपन


सावनी बचपन

उमस भरा
बीता समय
बरसी घटा
घनघोर है
बीथियों से
निकल बचपन
मुदित और
मदमस्त है
मेघ घनघोर
नभ में छाये
रस सुधा
बरसा रहे__
अलसा था
जीवन__
उमस में
सब__
मन ही मन
हरषा रहे,
तरसा बहुत !
सावनी बचपन
अब के बरस
हरषाने को
क्यों न उमड़े !!
अल्हड़ बालपन
मनभावन पल
यादों में..
संजो लेने को__

^^ विजय जयाड़ा

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